Monday, June 6, 2011

Sankat Nashan Ganesh Stotram

Stotra

            संकटनाशनगणेशस्तोत्रम् अर्थ  (Meaning)II
नारद जी बोले पार्वती नन्दन श्री गणेशजी को सिर झुकाकर प्रणाम करें और फिर अपनी आयु , कामना और अर्थ की सिद्धि के लिये उन भक्तनिवास का नित्यप्रति स्मरण करें ।।1।।
पहला वक्रतुण्ड (टेढे मुखवाले), दुसरा एकदन्त (एक दाँतवाले), तीसरा कृष्ण पिंगाक्ष (काली और भूरी आँख वाले), चौथा गजवक्र (हाथी के से मुख वाले) ।।2।।
पाँचवा लम्बोदरं (बड़े पेट वाला), छठा विकट (विकराल), साँतवा विघ्नराजेन्द्र (विध्नों का शासन करने वाला राजाधिराज) तथा आठवाँ धूम्रवर्ण (धूसर वर्ण वाले) ।।3।।
नवाँ भालचन्द्र (जिसके ललाट पर चन्द्र सुशोभित है), दसवाँ विनायक, ग्यारवाँ गणपति और बारहवाँ गजानन ।।4।।
इन बारह नामों का जो मनुष्य तीनों सन्धायों (प्रातः, मध्यान्ह और सांयकाल) में पाठ करता है, हे प्रभु ‍
! उसे किसी प्रकार के विध्न का भय नहीं रहता, इस प्रकार का स्मरण सब सिद्धियाँ देनेवाला है ।।5।।
इससे विद्याभिलाषी विद्या, धनाभिलाषी धन, पुत्रेच्छु पुत्र तथा मुमुक्षु मोक्षगति प्राप्त कर लेता है ।।6।।
इस गणपति स्तोत्र का जप करे तो छहः मास में इच्छित फल प्राप्त हो जाता है तथा एक वर्ष में पूर्ण सिद्धि प्राप्त हो जाती है – इसमें किसी प्रकार का संदेह नहीं है ।।7।।
जो मनुष्य इसे लिखकर आठ ब्राह्मणों को समर्पण करता है, गणेश जी की कृपा से उसे सब प्रकार की विद्या प्राप्त हो जाती है ।।8।।